Tuesday, April 21, 2009

वोह जो बीच का वक्त

जब इरादा नेक है
ख़ुद पर यकीन भी है
खुदा के होने का ख्याल भी
तावीज़ धागों का साथ भी
पर हासिल कुछ नही हो प् रहा….
यह जो जालिम बीच का वक्त है
बहुत तंग करता है और कोई नही उससे कुछ कह पता
जब काम तो बहुत अच्छा किया है
पर किसी ने देखा ही नही
“हम इतिला कर देंगे
आप फ़िक्र न करिएँ”
तो काम किया न किया एक बराबर…है न?
यह जो जालिम बीच का वक्त है
बहुत तंग करता है और कोई नही उससे कुछ कह पता
जब चाहत तो दोनों तरफ़ से है
शायाद एक तरफ़ से थोडी ज़्यादा
पर कहानी यंही आकर थम गई है
अब आंखों आँखों में बात हुयी भी थी
या फिर सिर्फ़ ऐसे लगा था तुम्हे…
यह जो जालिम बीच का वक्त है
बहुत तंग करता है और कोई नही उससे कुछ कह पता
जब सब कहते है दावा असर करेगी
बस थोड़ा वक्त लगेगा
चलो हमने तो दुआ भी जोड़ दी साथ
पर बहुत धीरे गुज़र रहा है आज दिन
यह जो जालिम बीच का वक्त है
बहुत तंग करता है और कोई नही उससे कुछ कह पता

2 comments:

रवि रतलामी said...

अति सुंदर, बहुत बढ़िया !

Seasonviews... said...

is it really YOU Shifa?? you write so well i didnt knowwwwwww..